पटना: मसौढ़ी अंचल में कुत्ते के नाम आवासीय प्रमाण पत्र जारी,डीएम ने दिए जांच के आदेश
पटना। बिहार की राजधानी पटना के मसौढ़ी अंचल में प्रशासनिक व्यवस्था की एक चौंकाने वाली और शर्मनाक लापरवाही सामने आई है, जहां एक कुत्ते के नाम पर बाकायदा आवासीय प्रमाण पत्र जारी कर दिया गया। प्रमाण पत्र में आवेदक का नाम "डॉग बाबू", पिता का नाम "कुत्ता बाबू" और मां का नाम "कुटिया देवी" दर्ज किया गया है। यह प्रमाण पत्र बाकायदा डिजिटल हस्ताक्षरित होकर जारी हुआ, जिसकी प्रमाण पत्र संख्या BRCCO/2025/15933581 है।
यह अजीबो-गरीब और बेहद गैर-जिम्मेदाराना हरकत सामने आने के बाद पटना जिला प्रशासन में हड़कंप मच गया है। जिलाधिकारी त्यागराजन एसएम ने मामले को गंभीरता से लेते हुए मसौढ़ी अनुमंडलाधिकारी को जांच का निर्देश दिया है। डीएम ने 24 घंटे के भीतर विस्तृत रिपोर्ट तलब की है और संबंधित कर्मियों व अधिकारियों पर कड़ी कार्रवाई के संकेत दिए हैं।
डीएम ने अपने आधिकारिक X (पूर्व में ट्विटर) अकाउंट पर जानकारी साझा करते हुए लिखा, “मसौढ़ी अंचल में डॉग बाबू के नाम से आवासीय प्रमाण पत्र जारी हुआ है। मामले के संज्ञान में आते ही इसे तत्काल रद्द कर दिया गया है। दोषी कर्मचारियों और पदाधिकारियों के खिलाफ न केवल विभागीय बल्कि कानूनी कार्रवाई भी की जा रही है। इस प्रमाण पत्र में दिए गए पते के अनुसार, 'डॉग बाबू' ग्राम काउली चक, वार्ड संख्या 15, पोस्ट मसौढ़ी, थाना मसौढ़ी, प्रखंड मसौढ़ी, जिला पटना के स्थायी निवासी के रूप में दर्शाए गए हैं।
प्रमाण पत्र पर मसौढ़ी के राजस्व पदाधिकारी मुरारी चौहान का डिजिटल सिग्नेचर भी अंकित है, जिससे स्पष्ट होता है कि बिना पर्याप्त जांच और सत्यापन के इस प्रमाण पत्र को जारी कर दिया गया। मसौढ़ी अनुमंडलाधिकारी के अनुसार, किसी अज्ञात व्यक्ति ने फर्जी तरीके से आवेदन कर प्रमाण पत्र प्राप्त करने की कोशिश की। हालांकि इस प्रमाण पत्र को अब रिजेक्ट कर दिया गया है, लेकिन सवाल यह उठता है कि यह आवेदन पहले स्थान पर स्वीकार कैसे हुआ?
प्रशासन अब इस मामले की तह तक जाने में जुट गया है। डीएम के निर्देश के बाद आवेदक, कंप्यूटर ऑपरेटर और प्रमाण पत्र निर्गत करने वाले अधिकारी के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज की जा रही है। इसके अलावा विभागीय और अनुशासनिक कार्रवाई भी तय मानी जा रही है। यह घटना न सिर्फ सरकारी तंत्र में व्याप्त लापरवाही और सतर्कता की कमी को उजागर करती है, बल्कि यह भी दिखाती है कि डिजिटल प्रक्रियाओं में भी यदि मानवीय निगरानी कमजोर हो तो फर्जीवाड़ा और मज़ाक किस हद तक पहुंच सकता है। बिहार प्रशासन की छवि को ठेस पहुंचाने वाले इस मामले ने एक बार फिर सवाल खड़ा कर दिया है।
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