कागज़ों तक सिमटा रोहतासगढ़ किले के सौंदर्यकरण अबतक हुए करोड़ों खर्च
रोहतास। बिहार के कैमूर पहाड़ियों के बीच बसे ऐतिहासिक रोहतासगढ़ किले की हालत आज चिंताजनक है। देश के गौरवशाली अतीत की गवाही देने वाला यह दुर्ग, जो एक समय अकबर के पूर्वी प्रांत की राजधानी रहा करता था, अब बदहाली और प्रशासनिक उदासीनता का प्रतीक बनता जा रहा है।
7 वर्षों में खर्च 40 लाख, लेकिन नतीजा शून्य
पुरातत्व विभाग के अभिलेखों के अनुसार, वर्ष 2008 से 2025 के बीच रोहतासगढ़ के संरक्षण और मरम्मत पर कुल 40 लाख 26 हजार 936 रुपये खर्च किए गए हैं। यह खुलासा शाहाबाद महोत्सव के संयोजक अखिलेश सिंह द्वारा सूचना के अधिकार (RTI) के तहत मांगी गई जानकारी से हुआ है। मगर जब वास्तविक स्थिति देखी जाती है, तो ये आंकड़े किसी मजाक से कम नहीं लगते।

सिर्फ कागजों पर संरक्षण, ज़मीनी हकीकत बदहाल
वर्तमान में किला परिसर जंगली घास, सूखते पेड़-पौधों और मलबों से अटा पड़ा है। दीवारें टूट रही हैं और कई जगहों पर दरारें भयावह रूप ले चुकी हैं। जहां कभी सैनिकों की गूंज सुनाई देती थी, वहां अब मवेशी चरते मिलते हैं। पर्यटकों द्वारा छोड़ा गया कचरा जगह-जगह बिखरा है और परिसर बदबूदार बन चुका है।
न सुरक्षा, न सफाई, न कोई ठोस निगरानी
पुरातत्व विभाग ने सुरक्षा कर्मियों की तैनाती की थी, पर वे अक्सर नदारद रहते हैं। स्थानीय लोगों का कहना है कि कुछ असामाजिक तत्व खजाने की खोज में किले की दीवारों को नुकसान पहुंचा रहे हैं। सावन के महीने में जब पर्यटक बड़ी संख्या में आते हैं, तो वनभोज के बहाने वे रातभर परिसर में ठहरते हैं और गंदगी का अंबार छोड़ जाते हैं।
स्थानीय नेताओं की गुहार, लेकिन सुनवाई नहीं
रोहतासगढ़ पंचायत के मुखिया नागेंद्र यादव ने कहा, "यह किला हमारी आस्था, पहचान और विरासत का प्रतीक है। इसकी दुर्दशा को देखकर दिल दुखता है। कई बार अधिकारियों को आवेदन दिए, मगर किसी ने सुध नहीं ली।" वहीं पूर्व मुखिया कृष्णा सिंह यादव ने मांग की है कि किले में स्थायी सफाई व्यवस्था और एक नियंत्रण कार्यालय खोला जाए ताकि पर्यटकों को सुविधाएं मिलें और स्थानीय युवाओं को रोजगार का अवसर भी मिल सके।
अतीत की गूंज, वर्तमान की चुप्पी
रोहतासगढ़ सिर्फ एक स्थापत्य संरचना नहीं, यह इतिहास के वे अध्याय समेटे है जहां से कई युद्धों की रणनीतियाँ बनीं और जहां भारत की राजनैतिक धारा ने करवटें लीं। लेकिन जिस धरोहर को गौरव के साथ संरक्षित किया जाना चाहिए था, उसे आज असावधानी, उपेक्षा और लचर निगरानी की भेंट चढ़ा दिया गया है।
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