प्रधानमंत्री मोदी ने महाकुंभ को ऐतिहासिक बताया, भारत की ताकत का प्रतीक
दिल्ली। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने उत्तर प्रदेश के प्रयागराज में संपन्न महाकुंभ को 1857 के स्वतंत्रता संग्राम और महात्मा गांधी के दांडी मार्च की तरह ऐतिहासिक क्षण बताया। उन्होंने कहा कि इस आयोजन ने पूरे विश्व को भारत की ताकत दिखाई और यह देश की एकता, संस्कृति और सामर्थ्य का जीवंत उदाहरण बना। लोकसभा में अपने बयान में प्रधानमंत्री ने कहा, "महाकुंभ इतना भव्य इसलिए बना क्योंकि यह देशवासियों के प्रयासों का परिणाम था। गंगा को धरती पर लाने के लिए जिस तरह भागीरथ ने प्रयास किया था, उसी तरह इस आयोजन में पूरे देश ने योगदान दिया।" उन्होंने इसे राष्ट्रीय चेतना और भारत की सांस्कृतिक विरासत का प्रतीक बताया।
राम मंदिर के बाद महाकुंभ ने भारत की शक्ति को दर्शाया
प्रधानमंत्री मोदी ने कहा, "राम मंदिर के बाद महाकुंभ ने साबित किया कि भारत अगले एक हजार साल के लिए तैयार है। यह इतिहास में एक ऐसा मोड़ है, जो आने वाली पीढ़ियों के लिए प्रेरणा बनेगा।" उन्होंने इस आयोजन की तुलना स्वामी विवेकानंद के शिकागो भाषण और 1857 के स्वतंत्रता संग्राम से की।
महाकुंभ का उत्साह डेढ़ महीने तक दिखा
पीएम मोदी ने कहा कि महाकुंभ के दौरान लोग अपनी सुविधाओं और चिंताओं से ऊपर उठकर इसमें शामिल हुए। उन्होंने अपने मॉरीशस दौरे का जिक्र किया, जहां उन्होंने त्रिवेणी संगम का पवित्र जल अर्पित किया और वहां की श्रद्धा को अद्वितीय बताया।
युवा पीढ़ी अपनी परंपराओं को गर्व से अपना रही है
प्रधानमंत्री ने कहा कि आज का युवा अपनी परंपराओं को गर्व से अपना रहा है, जो देश की सबसे बड़ी ताकत है। उन्होंने महाकुंभ को एकता और ‘हम’ की भावना का सबसे बड़ा उदाहरण बताया, जहां देशभर के लोग बिना किसी भेदभाव के संगम तट पर जुटे।
पर्यावरण संरक्षण और नदियों के संरक्षण पर दिया जोर
पीएम मोदी ने नदियों की स्थिति पर चिंता व्यक्त करते हुए कहा, "हमारे देश में कई नदियां संकट में हैं। हमें नदी उत्सवों को बढ़ावा देना होगा ताकि आज की पीढ़ी पानी के महत्व को समझे।" उन्होंने महाकुंभ को सामाजिक भाईचारे और भारतीय संस्कृति के उत्थान का प्रतीक बताया।
महाकुंभ से प्रेरणा लेकर नए संकल्पों की ओर बढ़ेगा देश
प्रधानमंत्री ने अपने संबोधन में कहा, "महाकुंभ सिर्फ एक धार्मिक आयोजन नहीं था, बल्कि यह हमारी ताकत, एकता और संस्कृति का उत्सव था, जिसे दुनिया ने देखा।" उन्होंने इसे भारत की सांस्कृतिक और आध्यात्मिक विरासत का स्वर्णिम अध्याय बताया।
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