लोकसभा में नहीं शुरू हो सकी ऑपरेशन सिंदूर पर चर्चा, विपक्ष के हंगामे से तीन बार स्थगित हुई कार्यवाही
नई दिल्ली। संसद के मानसून सत्र के छठे दिन सोमवार को लोकसभा में बहुप्रतीक्षित ऑपरेशन सिंदूर पर चर्चा शुरू नहीं हो सकी। सरकार की ओर से इस अहम मुद्दे पर 16 घंटे की चर्चा के लिए समय निर्धारित किया गया था, लेकिन विपक्ष की ओर से बिहार में वोटर वेरिफिकेशन को लेकर चल रहे स्पेशल इंटेंसिव रिवीजन (SIR) के मुद्दे पर जोरदार हंगामे के कारण सदन की कार्यवाही तीन बार स्थगित करनी पड़ी।
लोकसभा में जैसे ही ऑपरेशन सिंदूर पर बहस शुरू होने की तैयारी थी, विपक्ष ने अचानक यह शर्त रख दी कि पहले यह आश्वासन दिया जाए कि इस मुद्दे के बाद ही बिहार के वोटर वेरिफिकेशन पर चर्चा होगी। इस पर नाराजगी जताते हुए केंद्रीय मंत्री किरेन रिजिजू ने कहा कि जब सभी दलों के बीच ऑपरेशन सिंदूर पर चर्चा का फैसला हो चुका था, तो अंतिम क्षणों में नई शर्तें रखना संसदीय परंपराओं के खिलाफ है। रिजिजू ने कहा, "यह चर्चा से ठीक 10 मिनट पहले शर्तें लगाकर संसद को बंधक बनाने जैसा है। कांग्रेस और विपक्षी दल अपने वादे से पलट गए हैं। यह लोकतंत्र और देश के साथ धोखा है।
सरकार की ओर से रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह को ऑपरेशन सिंदूर पर बहस की शुरुआत करनी थी। चर्चा के दौरान गृह मंत्री अमित शाह और विदेश मंत्री एस. जयशंकर भी विपक्ष के सवालों के जवाब देने के लिए तैयार हैं। खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी लोकसभा में मौजूद रहे, लेकिन बार-बार की स्थगन के कारण बहस शुरू ही नहीं हो सकी। रिजिजू ने विपक्ष पर 'पाकिस्तान की भाषा' बोलने का भी आरोप लगाया। उन्होंने कहा, "विपक्ष को तय करना होगा कि वह राष्ट्रीय सुरक्षा जैसे गंभीर मुद्दे पर सरकार से सवाल पूछना चाहता है या राजनीतिक शर्तें लगाकर मुद्दे को भटकाना। हम हर सवाल का जवाब देने को तैयार हैं, लेकिन संसद की गरिमा से समझौता नहीं हो सकता।
गौरतलब है कि ऑपरेशन सिंदूर भारतीय सेना द्वारा विदेश में चलाया गया एक गोपनीय और रणनीतिक सैन्य अभियान है, जिसकी जानकारी हाल ही में सार्वजनिक की गई थी। यह अभियान आतंकवाद से मुकाबला, सीमा पार गतिविधियों की निगरानी और राष्ट्रीय सुरक्षा से जुड़ा है। सरकार इस मुद्दे पर विस्तृत जानकारी और बहस के लिए पूरी तरह तैयार थी।
सत्र के दौरान हंगामे के कारण लोकसभा की कार्यवाही दो बार स्थगित होने के बाद दोपहर 2 बजे फिर शुरू की गई, लेकिन विपक्ष के तेवर नरम नहीं पड़े। इससे यह स्पष्ट हो गया कि यदि विपक्ष और सरकार के बीच आपसी सहमति नहीं बनती, तो ऑपरेशन सिंदूर पर चर्चा लंबी खिंच सकती है या फिर अधर में भी रह सकती है। अब सभी की निगाहें दोबारा शुरू होने वाली लोकसभा कार्यवाही पर टिकी हैं, जिसमें यह स्पष्ट होगा कि सरकार और विपक्ष के बीच कोई सहमति बन पाती है या नहीं। यदि गतिरोध जारी रहता है, तो संसद का यह सत्र भी राजनीतिक टकराव की भेंट चढ़ सकता है।
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