अनिल अंबानी के 35 से अधिक ठिकानों पर ED की रेड
दिल्ली। देश के कॉरपोरेट और बैंकिंग सेक्टर से जुड़े एक बड़े घोटाले का पर्दाफाश उस समय हुआ, जब केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो (CBI) ने रिलायंस अनिल धीरूभाई अंबानी ग्रुप की RAAGA कंपनियों के खिलाफ दो अलग-अलग FIR दर्ज कीं। इन एफआईआर (RC2242022A0002 और RC2242022A0003) में धोखाधड़ी, गबन और बैंकों से फर्जी ऋण लेने जैसे गंभीर आरोप लगाए गए हैं। CBI की प्राथमिक जांच के आधार पर प्रवर्तन निदेशालय (ED) ने इस मामले में अपनी जांच शुरू की और जो खुलासे हुए, उन्होंने कॉरपोरेट-जगत के अंदर चल रही लोन अप्रूवल और मनी डायवर्जन की बड़ी साजिश को उजागर कर दिया।
यस बैंक से 3000 करोड़ का फर्जी लोन और घूस का जाल
ED की जांच में यह सामने आया कि 2017 से 2019 के बीच यस बैंक द्वारा RAAGA कंपनियों को दिए गए लगभग 3000 करोड़ रुपये के कर्ज पूरी तरह से बैंकिंग मानकों की अनदेखी करते हुए मंजूर किए गए थे। जांच में पाया गया कि लोन मंजूर होने से पहले ही यस बैंक के कुछ वरिष्ठ अधिकारियों को निजी कंपनियों के माध्यम से भारी रकम प्रदान की गई, जिससे घूसखोरी की आशंका को बल मिलता है। सबसे चौंकाने वाली बात यह रही कि क्रेडिट अप्रूवल मेमोरैंडम (CAM) जैसे जरूरी दस्तावेज बैकडेट में तैयार किए गए। बिना किसी ड्यू डिलिजेंस या जोखिम मूल्यांकन के इन लोन को स्वीकृति दी गई, जो बैंक की आंतरिक क्रेडिट नीति का स्पष्ट उल्लंघन है।
रकम की शेल कंपनियों में हेराफेरी
जांच में यह भी पाया गया कि लोन की राशि को तुरंत ही ग्रुप की अन्य कंपनियों या शेल कंपनियों में ट्रांसफर कर दिया गया। कई बार तो लोन उन्हीं कंपनियों को दिए गए जिनकी वित्तीय स्थिति बेहद कमजोर थी, जिनके पते एक जैसे थे, या जिनके डायरेक्टर्स आपस में जुड़े हुए थे। कुछ मामलों में आवेदन और मंजूरी की तारीख एक ही पाई गई, और कई बार तो लोन की राशि मंजूरी से पहले ही ट्रांसफर कर दी गई, जिससे साफ होता है कि यह सब एक सुनियोजित धोखाधड़ी योजना का हिस्सा था।
RHFL में भी घोटाले के संकेत, SEBI ने उठाए सवाल
ED को इस घोटाले से जुड़ा एक और बड़ा सुराग मिला, जब SEBI ने Reliance Home Finance Limited (RHFL) से संबंधित रिपोर्ट साझा की। सेबी की रिपोर्ट के अनुसार, वित्त वर्ष 2017-18 में RHFL ने 3,742.60 करोड़ रुपये के कॉरपोरेट लोन दिए, जो अगले ही वर्ष 2018-19 में बढ़कर 8,670.80 करोड़ रुपये हो गया। इतनी बड़ी लोन राशि वितरण के बावजूद लोन मंजूरी के मानकों और नियमों की सरेआम अनदेखी की गई। कई बार जरूरी दस्तावेजों की जांच किए बिना ही भारी रकम स्वीकृत कर दी गई। रिपोर्ट के अनुसार, इन लोन का बड़ा हिस्सा बाद में प्रमोटर ग्रुप की कंपनियों में डायवर्ट कर दिया गया, जिससे वित्तीय अनियमितताओं का बड़ा मामला सामने आया।
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