राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मु ने देहरादून में मनाया अंतरराष्ट्रीय योग दिवस, कहा - "योग मानवता की साझा धरोहर"

राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मु ने देहरादून में मनाया अंतरराष्ट्रीय योग दिवस, कहा -

 दिल्ली। अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस 2025 के अवसर पर शनिवार को देहरादून में आयोजित एक भव्य कार्यक्रम में देश की राष्ट्रपति श्रीमती द्रौपदी मुर्मु ने भाग लिया। इस मौके पर उन्होंने देशवासियों और विश्व समुदाय को योग दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं देते हुए योग के महत्व और इसकी सार्वभौमिकता पर जोर दिया।

राष्ट्रपति मुर्मु ने अपने संबोधन में कहा कि वर्ष 2015 से अंतरराष्ट्रीय योग दिवस विश्व के अधिकांश देशों में मनाया जा रहा है और आज योग मानवता की “साझा धरोहर” बन चुका है। उन्होंने कहा, “योग का अर्थ है जोड़ना। यह शरीर, मन और आत्मा को जोड़ता है। साथ ही एक व्यक्ति को दूसरे व्यक्ति से, एक समुदाय को दूसरे समुदाय से और एक देश को दूसरे देश से जोड़ने का कार्य भी योग करता है। इस वर्ष की थीम "एक पृथ्वी, एक स्वास्थ्य" का उल्लेख करते हुए राष्ट्रपति ने कहा कि यह विषय समग्र स्वास्थ्य और वैश्विक एकता की भावना को दर्शाता है, जो आज के समय की सबसे बड़ी आवश्यकता है।

उन्होंने यह भी कहा कि भारत की पहल पर अब पूरी दुनिया योग को अपना रही है और इससे लोगों के जीवन में सकारात्मक बदलाव आ रहे हैं। “योग जीवन जीने की एक कला है। यह किसी धर्म, पंथ या संप्रदाय से जुड़ा नहीं है। दुर्भाग्यवश कुछ लोग इसे एक समुदाय से जोड़ने की भूल करते हैं, जबकि यह मानव कल्याण का सार्वभौमिक मार्ग है,” राष्ट्रपति ने स्पष्ट किया। राष्ट्रपति ने यह भी आग्रह किया कि योग को जीवनशैली का हिस्सा बनाया जाए, क्योंकि “स्वास्थ्य ही सबसे बड़ी संपदा है और इसे स्वस्थ रखना हम सभी का कर्तव्य है।

इस अवसर पर देश के उपराष्ट्रपति श्री जगदीप धनखड़ ने भी ‘एक्स’ (पूर्व ट्विटर) पर शुभकामनाएं देते हुए लिखा, “योग भारत की 5000 वर्ष पुरानी सभ्यता की अमूल्य देन है, जिसने दुनिया भर के लाखों लोगों को शांति, शक्ति और एकता प्रदान की है।” उन्होंने इसे भारत का ऐसा उपहार बताया जो सीमाओं से परे जाकर मानवता को जोड़ता है। देहरादून में आयोजित इस कार्यक्रम में बड़ी संख्या में आम नागरिक, योग प्रशिक्षक, छात्र और सैन्य बलों के जवान भी शामिल हुए। कार्यक्रम में सामूहिक योगाभ्यास हुआ और प्रशिक्षकों ने विभिन्न योग आसनों के लाभ भी बताए। योग दिवस का यह आयोजन न केवल भारत बल्कि दुनिया के अनेक देशों में धूमधाम से मनाया गया, जो भारत की सांस्कृतिक विरासत और विश्व कल्याण की सोच को प्रतिबिंबित करता है।

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