सावन में श्रद्धा का संगम: देवघर के बाबा बैद्यनाथ धाम का दिव्य इतिहास, कांवड़ यात्रा की परंपरा और पहली पूजा की रहस्यमयी कथा
देवघर (झारखंड)। भारत की आध्यात्मिक और सांस्कृतिक चेतना में एक विशेष स्थान रखने वाला देवघर स्थित बाबा बैद्यनाथ धाम सावन के पावन महीने में श्रद्धालुओं की आस्था का केंद्र बन जाता है। यह मंदिर न केवल बारह ज्योतिर्लिंगों में प्रमुख स्थान रखता है, बल्कि यह शक्ति पीठों में भी गिना जाता है। यहां शिव और शक्ति दोनों की उपस्थिति है, जो इसे और अधिक महत्वपूर्ण बनाती है। हर वर्ष जैसे ही श्रावण मास का आरंभ होता है, पूरा देवघर हर-हर महादेव और बोल बम के जयघोष से गूंज उठता है। गंगाजल से भरे कांवड़ों को कंधे पर उठाए लाखों श्रद्धालु इस दिव्य तीर्थ की ओर निकल पड़ते हैं, मानो स्वर्ग के द्वार की ओर यात्रा कर रहे हों।

बाबा बैद्यनाथ धाम का ऐतिहासिक और पौराणिक महत्व
इस प्राचीन मंदिर की कथा अत्यंत रोचक है और इसका उल्लेख कई पुराणों एवं धार्मिक ग्रंथों में मिलता है। मान्यता है कि लंकापति रावण, जो शिव का महान भक्त था, उसने भगवान शिव को लंका ले जाने के उद्देश्य से घोर तप किया था। अपनी भक्ति से प्रसन्न कर वह शिवलिंग को साथ ले चला, परंतु देवताओं ने यह स्वीकार नहीं किया। भगवान विष्णु ने एक युक्ति के तहत बालक का रूप धारण कर रावण को रोका। शिवलिंग भूमि पर रखते ही स्थायी रूप से वहीं स्थापित हो गया। इसी कारण यह स्थान ‘रावणेश्वर’ भी कहलाता है। यहां शिव, वैद्य रूप में प्रतिष्ठित हैं — यही कारण है कि यह स्थान “बैद्यनाथ” नाम से प्रसिद्ध हुआ।
प्रथम पूजा की कथा: रावण, विष्णु और शिव की त्रयी
पौराणिक कथाओं के अनुसार, रावण ही वह पहला व्यक्ति था जिसने यहां भगवान शिव की पूजा की थी। उसने अपने दसों सिर काटकर शिव को अर्पित किए थे। इस अतुलनीय भक्ति से प्रसन्न होकर शिव ने रावण को दर्शन दिए और वरदान दिया कि वे लंका में उसकी रक्षा करेंगे। कुछ मान्यताओं के अनुसार, पहला जलाभिषेक उस ग्वाले (भगवान विष्णु) द्वारा किया गया था, जिसने शिवलिंग को भूमि पर रखा था। इसलिए यह स्थान दोनों महापुरुषों — रावण और विष्णु — की कथाओं से जुड़ा हुआ है, जो इसे और भी पवित्र बना देता है।

सावन और कांवड़ यात्रा: आत्मशुद्धि और भक्ति का पर्व
श्रावण मास में शुरू होने वाली कांवड़ यात्रा देश के सबसे बड़े तीर्थ यात्राओं में गिनी जाती है। यह यात्रा सुल्तानगंज (बिहार) से प्रारंभ होती है, जहां गंगा उत्तरवाहिनी रूप में बहती है। वहां से जल भरकर श्रद्धालु लगभग 105 किलोमीटर पैदल चलकर देवघर पहुंचते हैं। यह यात्रा पूर्ण रूप से निःस्वार्थ भक्ति, तप और श्रद्धा का प्रतीक है। हर सोमवार को विशेष पूजा होती है, जिसे ‘श्रावण सोमवार व्रत’ कहते हैं। इस दिन लाखों श्रद्धालु मंदिर में जल चढ़ाकर बाबा बैद्यनाथ से अपने कष्टों का निवारण और मनोकामनाओं की पूर्ति की प्रार्थना करते हैं। ऐसा माना जाता है कि जो भक्त सावन में बाबा बैद्यनाथ को जल चढ़ाते हैं, उनकी हर इच्छा पूरी होती है।

आस्था के साथ सुविधा: प्रशासनिक तैयारियां
राज्य सरकार और जिला प्रशासन द्वारा हर वर्ष सावन मेले के दौरान विशेष व्यवस्थाएं की जाती हैं। सुरक्षा के लिए भारी संख्या में पुलिस बल तैनात किया जाता है। जगह-जगह स्वास्थ्य शिविर, भोजनालय, विश्राम स्थल और मोबाइल शौचालय की सुविधा उपलब्ध कराई जाती है। भीड़ नियंत्रण के लिए मंदिर परिसर में बैरिकेडिंग, सीसीटीवी और मेडिकल इमरजेंसी सेवाएं तैनात रहती हैं।रेलवे की ओर से विशेष कांवड़ स्पेशल ट्रेनें चलाई जाती हैं और देवघर हवाई अड्डे से भी अब श्रद्धालु सीधे मंदिर नगरी पहुंच सकते हैं। हर वर्ष की तरह इस बार भी हाईटेक व्यवस्था के साथ तैयारियां की गई हैं। सावन के महीने में न केवल धार्मिक आयोजन होते हैं, बल्कि सांस्कृतिक कार्यक्रम भी होते हैं। भजन-कीर्तन, रात्रि जागरण, पारंपरिक नृत्य और लोकगीतों से वातावरण भक्तिमय हो जाता है। शहर की गलियां रंग-बिरंगी सजावट से सजी रहती हैं और बाजारों में रौनक देखते ही बनती है। देवघर के स्थानीय लोग इस समय अतिथि-संस्कृति का पालन करते हुए यात्रियों की सेवा में लग जाते हैं। कांवड़ियों के लिए जगह-जगह भंडारे लगते हैं और शीतल जल वितरण किया जाता है। यह नज़ारा भारत की जीवंत संस्कृति की एक अद्भुत झलक पेश करता है।
देवघर – जहाँ धरती पर उतर आता है शिवलोक

बाबा बैद्यनाथ धाम केवल एक मंदिर नहीं, बल्कि यह वह आध्यात्मिक केंद्र है जहां भक्ति, इतिहास, परंपरा और संस्कृति का अद्वितीय संगम होता है। सावन के महीने में यह स्थल एक जीवंत तपोभूमि बन जाता है, जहां हर भक्त, चाहे वह किसी भी वर्ग या क्षेत्र का हो, शिव के चरणों में आत्मिक शांति पाता है। इस वर्ष भी देवघर अपने दिव्य रूप में भक्तों के स्वागत के लिए सुसज्जित है। बाबा बैद्यनाथ की नगरी सावन में श्रद्धा, भक्ति और सेवा का विराट उत्सव बन जाती है — जहाँ हर आवाज़ में “बोल बम” की गूंज और हर मन में शिव का वास होता है।
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